गोविंद गिरी: भील आंदोलन के जनक और आदिवासी चेतना के अग्रदूत - Rajasthan Study

गोविंद गिरी: भील आंदोलन के जनक और आदिवासी चेतना के अग्रदूत

 

गोविंद गिरी: भील आंदोलन के जनक 

                                          भारत का स्वतंत्रता संग्राम सिर्फ मैदानों और शहरों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके गूंज आदिवासी अंचलों में भी सुनाई देती थी। इन्हीं अंचलों से एक नाम उभरकर आता है — गोविंद गिरी, जिन्हें "भील समाज का उद्धारक" और "मानगढ़ हत्याकांड के महानायक" के रूप में जाना जाता है।


🔹 जीवन परिचय

गोविंद गिरी का जन्म 1858 ई. में वर्तमान राजस्थान के डूंगरपुर ज़िले के एक बंजारा परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन समाज-सुधार, शिक्षा और आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया।


🔹 प्रमुख योगदान और घटनाएँ

✅ 1. समाज-सुधार की शुरुआत

गोविंद गिरी ने आदिवासी समाज में व्याप्त कुरीतियों, जैसे– नशाखोरी, अशिक्षा, छुआछूत, के खिलाफ आवाज़ उठाई। वे चाहते थे कि भील समाज आत्मनिर्भर बने, शिक्षित हो और अपने अधिकारों को पहचाने।

✅ 2. 1883: सिरोही में 'सम्पसभा' की स्थापना

यह सभा एक सामाजिक संगठन थी, जिसका उद्देश्य था– भील समुदाय को संगठित करना, उनमें आत्मगौरव और आत्मविश्वास पैदा करना।

✅ 3. मानगढ़: आंदोलन का केंद्र

गोविंद गिरी ने मानगढ़ (बांसवाड़ा) को अपने आंदोलन का मुख्य केंद्र बनाया। यह जगह अब "राजस्थान का जलियांवाला बाग" कहलाती है।

✅ 4. 1903: मानगढ़ में पहला अधिवेशन

यह अधिवेशन भील समुदाय की एकता और चेतना का प्रतीक था। इसमें बड़ी संख्या में आदिवासी एकत्र हुए और अपने अधिकारों की मांग की।

✅ 5. 1913: मानगढ़ हत्याकांड

17 नवम्बर 1913 को अंग्रेजी सेना ने मानगढ़ की पहाड़ियों पर एकत्र लगभग 1500 भीलों पर गोलीबारी की, जिसमें सभी शहीद हो गए। यह घटना जलियांवाला बाग हत्याकांड जितनी ही क्रूर थी, लेकिन आज भी कम जानी जाती है।


🔹 गोविंद गिरी का विचार और शिक्षाएँ

  • शिक्षा को हथियार बनाओ

  • आत्मनिर्भर बनो

  • नशा, चोरी, हिंसा और झगड़े से दूर रहो

  • संगठित रहो, संघर्ष करो

गोविंद गिरी का उद्देश्य केवल अंग्रेजों से स्वतंत्रता पाना नहीं था, बल्कि भील समाज को आंतरिक रूप से जागरूक और मजबूत बनाना भी था।


🔹 गोविंद गुरु की विरासत

  • उन्हें ‘गोविंद गुरु’ के नाम से पूजा जाता है।

  • उनकी समाधि आज भी मानगढ़ धाम में स्थित है, जो एक तीर्थ स्थल बन चुका है।

  • राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासी समुदाय आज भी गोविंद गुरु को धार्मिक और सामाजिक गुरु मानते हैं।


🔹 निष्कर्ष

गोविंद गिरी न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक समाज-सुधारक और अध्यात्मिक गुरु भी थे। उन्होंने आदिवासी समाज को एक नई दिशा दी, उनकी चेतना को जगाया और उन्हें अधिकारों के लिए संगठित किया। उनका जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत है।



अन्य:-

गोविंद गिरी: भील आंदोलन के जनक और आदिवासी चेतना के अग्रदूत

राजस्थान की संपूर्ण जानकारी का भंडार